उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र सरकार को तगड़ा झटका देते हुए संविधान में 97 वें संशोधन के भाग IXB को रद्द कर दिया, जो देश में सहकारी स tcमितियों के प्रभावी प्रबंधन से संबंधित है।
नई दिल्ली:- इससे नवगठित सहकारिता मंत्रालय के औचित्य पर गम्भीर प्रश्नचिन्ह लग गया है और इसे राज्यों के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है। जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने भारत संघ बनाम राजेंद्र शाह में गुजरात उच्च न्यायालय के 2013 के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर फैसला सुनाया, जिसमें 97 वें संवैधानिक संशोधन के कुछ प्रावधानों को खारिज कर दिया गया और कहा गया कि संसद सहकारी संबंध में कानून नहीं बना सकती है क्योंकि संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, सहकारिता राज्य का विषय है।
जस्टिस आरएफ नरीमन जस्टिस बीआर गवई ने संविधान में 97 वें संशोधन के भाग IXB को रद्द कर दिया। जबकि जस्टिस जोसेफ़ ने एक अलग फैसले में पूरे 97 वें संविधान संशोधन को ही रद्द कर दिया। जस्टिस नरीमन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जहां तक सहकारी समितियों का संबंध है, मैंने भाग IX बी को रद्द कर दिया है, जस्टिस केएम जोसेफ ने एक असहमतिपूर्ण निर्णय दिया है, जहां पूरे संविधान संशोधन को रद्द कर दिया गया है।
इस फैसले से उच्चतम न्यायालय ने गुजरात हाई कोर्ट के उस फ़ैसले पर मुहर लगा दी है जिसमें सहकारिता से जुड़े 97वें संविधान संशोधन क़ानून को रद्द कर दिया गया था। इसके साथ ही केंद्र में अलग सहकारिता मंत्रालय बनाने पर सवालिया निशान लग गया है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, सहकारिता राज्य का विषय है। लेकिन संविधान का 97वां संशोधन दिसंबर 2011 में संसद से पारित कर दिया गया और यह फरवरी 2012 में लागू कर दिया गया। इसके तहत सहकारी संस्थाओं के कुशल प्रबंधन के लिए कई तरह के बदलाव किए गए।
22 अप्रैल, 2013 को गुजरात हाई कोर्ट ने 97वें संविधान संशोधन की कुछ बातों को खारिज करते हुए कहा था कि केंद्र सहकारी संस्थाओं से जुड़े नियम नहीं बना सकता क्योंकि यह पूरी तरह राज्य का मामला है। पीठ ने मंगलवार को गुजरात हाई कोर्ट के निर्णय के ख़िलाफ़ दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया।
इससे नवगठित सहकारिता मंत्रालय के औचित्य पर गम्भीर प्रश्नचिन्ह लग गया है और इसे राज्यों के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है। जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने भारत संघ बनाम राजेंद्र शाह में गुजरात उच्च न्यायालय के 2013 के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर फैसला सुनाया, जिसमें 97 वें संवैधानिक संशोधन के कुछ प्रावधानों को खारिज कर दिया गया और कहा गया कि संसद सहकारी संबंध में कानून नहीं बना सकती है क्योंकि संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, सहकारिता राज्य का विषय है।
जस्टिस आरएफ नरीमन जस्टिस बीआर गवई ने संविधान में 97 वें संशोधन के भाग IXB को रद्द कर दिया। जबकि जस्टिस जोसेफ़ ने एक अलग फैसले में पूरे 97 वें संविधान संशोधन को ही रद्द कर दिया। जस्टिस नरीमन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जहां तक सहकारी समितियों का संबंध है, मैंने भाग IX बी को रद्द कर दिया है, जस्टिस केएम जोसेफ ने एक असहमतिपूर्ण निर्णय दिया है, जहां पूरे संविधान संशोधन को रद्द कर दिया गया है।
इस फैसले से उच्चतम न्यायालय ने गुजरात हाई कोर्ट के उस फ़ैसले पर मुहर लगा दी है जिसमें सहकारिता से जुड़े 97वें संविधान संशोधन क़ानून को रद्द कर दिया गया था। इसके साथ ही केंद्र में अलग सहकारिता मंत्रालय बनाने पर सवालिया निशान लग गया है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, सहकारिता राज्य का विषय है। लेकिन संविधान का 97वां संशोधन दिसंबर 2011 में संसद से पारित कर दिया गया और यह फरवरी 2012 में लागू कर दिया गया। इसके तहत सहकारी संस्थाओं के कुशल प्रबंधन के लिए कई तरह के बदलाव किए गए।
22 अप्रैल, 2013 को गुजरात हाई कोर्ट ने 97वें संविधान संशोधन की कुछ बातों को खारिज करते हुए कहा था कि केंद्र सहकारी संस्थाओं से जुड़े नियम नहीं बना सकता क्योंकि यह पूरी तरह राज्य का मामला है। पीठ ने मंगलवार को गुजरात हाई कोर्ट के निर्णय के ख़िलाफ़ दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया।
गुजरात हाई कोर्ट ने सहकारिता में क़ानून बनाने से जुड़े संविधान संशोधन क़ानून को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि संविधान की धारा 368 (2) के प्रावधानों के तहत आधे से अधिक राज्यों की रज़ामंदी नहीं ली गई थी संविधान की अनुसूची सात के अनुसार सहकारिता राज्य सूची की 32वीं प्रविष्टि है। इसे वहां से निकाल कर केंद्र की सूची में डालने के लिए पारित होने वाले संविधान संशोधन को आधे से अधिक राज्य विधानसभाओं की सहमति चाहिए।
गुजरात हाई कोर्ट ने 97वें संशोधन क़ानून को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि इसके ज़रिए संसद विधानसभाओं के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप कर रही है और उसमें कटौती कर रही है। अपने निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोऑपरेटिव सोसाइटी संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची में है, लेकिन संसद ने अनुच्छेद 368 (2) का पालन किए बग़ैर विधानसभाओं के अधिकार क्षेत्र को नियंत्रित करने की कोशिश की है। उसे ऐसे करने के पहले आधे से अधिक राज्य विधानसभाओं से इसे पारित करवाना चाहिए था, जो नहीं किया गया है।
उच्चतम यायालय का यह फ़ैसला केंद्र सरकार के लिए झटका है क्योंकि यह केंद्र में सहकारिता मंत्रालय के गठन के कुछ दिन बाद ही आया है। पिछले कैबिनेट विस्तार में सहकारिता मंत्रालय बनाया गया और उसे अमित शाह के हवाले कर दिया गया। उस समय भी यह सवाल उठा था कि केंद्र में सहकारिता मंत्रालय कैसे हो सकता है क्योंकि यह तो राज्य का विषय है। उस समय 97वें संविधान संशोधन क़ानून का हवाला देकर कहा गया था कि केंद्र के पास यह विषय हो सकता है। लेकिन उच्चतम न्यायालय के इस फ़ैसले से यह तो साफ हो गया है कि केंद्र के पास यह विषय और इस तरह यह मंत्रालय नहीं हो सकता है।
उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपनी अपील में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल द्वारा केंद्र सरकार की ओर से दो मुख्य तर्क दिए। वेणुगोपाल ने कहा कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति सातवीं अनुसूची के साथ पढ़े गए अनुच्छेद 246 के अनुसार विधायी प्रविष्टियों के आवंटन से सीमित नहीं है। संसद की संविधान शक्ति उसकी विधायी शक्ति से भिन्न होती है। वेणुगोपाल ने कहा कि अनुच्छेद 368 संशोधन की प्रक्रिया बताता है और इससे अलग होना मूल संरचना का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)