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देश

ऐसे में तो दस्ताना पहनकर लड़कियों को छेड़ने वालों को नहीं होगी सजा, सुप्रीम कोर्ट में आखिर क्यों बोले अटॉर्नी जनरल

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दिल्ली 24 अगस्त 2021 जनरल केके वेणुगोपाल ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से बंबई हाईकोर्ट के उस विवादास्पद फैसले को पलटने का आग्रह किया, जिसमें कहा गया था कि आरोपी और बच्चा, दोनों के बीच सीधा त्वचा से त्वचा संपर्क नहीं हुआ है तो पॉक्सो के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं होगा।

जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ के समक्ष इस फैसले को एक खतरनाक और अपमानजनक मिसाल बताते हुए, अटॉर्नी जनरल ने कहा कि फैसले का मतलब यह होगा कि एक व्यक्ति जो सर्जिकल दस्ताने पहनकर एक बच्चे का यौन शोषण करता है, उसे बरी कर दिया जाएगा।

उच्च न्यायालय (नागपुर पीठ) ने एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि एक नाबालिग लड़की के अंगों को उसके कपड़ों के ऊपर से टटोलने पर पोक्सो की धारा 8 के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं होगा। यह मानते हुए कि धारा 8 पोक्सो के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए त्वचा से त्वचा संपर्क होना चाहिए, उच्च न्यायालय ने माना कि विचाराधीन कृत्य केवल धारा 354 आईपीसी के तहत छेड़छाड़ के एक कमतर अपराध के समान होगी। केंद्र सरकार की अपील पर इस फैसले के संचालन पर कोर्ट ने रोक लगा दी थी।

पॉक्सो के तहत अपराध के 43,000 मामले सामने आए
सनद रहे कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि एक नाबालिग लड़की को कपड़ों पर से टटोलना पॉक्सो की धारा-8 के तहत ‘यौन उत्पीड़न’ का अपराध नहीं होगा. हाई कोर्ट का कहना था कि पॉक्सो की धारा-8 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए ‘त्वचा से त्वचा’ संपर्क होना चाहिए. हाई कोर्ट का मानना था कि यह कृत्य आईपीसी की धारा-354 आईपीसी के तहत ‘छेड़छाड़’ का अपराध बनता है.

अटॉर्नी जनरल ने पीठ के समक्ष यह भी कहा कि हाईकोर्ट का निर्णय विधायी मंशा के विपरीत था. उन्होंने यह भी बताया कि पिछले एक वर्ष में पॉक्सो के तहत अपराध के 43,000 मामले सामने आए हैं. पीठ, हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अटॉर्नी जनरल द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी. महाराष्ट्र राज्य के वकील राहुल चिटनिस ने पीठ को बताया कि राज्य सरकार, अटॉर्नी जनरल की दलीलों का समर्थन कर रही है. राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी फैसले के खिलाफ अलग अपील दायर की है.

27 जनवरी को इस आदेश पर लगी थी रोक
27 जनवरी को तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाईकोर्ट के इस विवादित आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी. पीठ ने छह अगस्त को इस मामले में वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे को न्याय मित्र नियुक्त किया था. उपरोक्त मामले के साथ, सुप्रीम कोर्ट बॉम्बे हाईकोर्ट के एक और उस विवादास्पद फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र राज्य द्वारा दायर अपील पर भी विचार कर रहा है, जिसमें कहा गया था कि नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ने और पैंट की ज़िप खोलने का कार्य पॉक्सो के तहत यौन हमले की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता.

मंगलवार को पीठ ने पाया कि नोटिस जारी किए जाने के बावजूद आरोपी के लिए कोई पेश नहीं हुआ. लिहाजा पीठ ने सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति को दोनों अपीलों में अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अपने पैनल से एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के साथ दो वरिष्ठ वकीलों की सेवाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया. अगली सुनवाई 14 सितंबर को होगी. उक्त दोनों ही फैसले बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर पीठ) की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने पारित किए थे.

पीठ ने कहा कि नोटिस के बावजूद आरोपी के लिए कोई प्रतिनिधित्व पेश नहीं हुआ। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी से कहा कि अभियुक्तों के लिए एडवोकेट-आन-रिकॉर्ड के साथ दो वरिष्ठ अधिवक्ता उपलब्ध करवाए। मामलों की अंतिम सुनवाई 14 सितंबर को होगी।

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