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देश

किसी राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण के बिना इतने बड़े स्तर पर ये स्कैम कैसे चल रहा था. केस की बड़ी मछलियों तक हाथ पहुंचेंगे या नहीं ?देश के दो बड़े इंजीनियरिंग और मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम सवालों के घेरे में हैं.

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खास खबर कुछ हफ्ते पहले JEE मेंस के एग्जाम में डमी कैंडिडेट बिठाकर एग्जाम दिलाने के मामले सामने आए थे. अब मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए जरूरी एग्जाम NEET (National Eligibility cum Entrance Test) को लेकर हैरान करने वाला खुलासा हुआ है. केंद्रीय जांच एजेंसी CBI ने दावा किया है कि नागपुर की एक कंपनी ने 50-50 लाख रुपए लेकर ये एग्जाम पास कराने का ठेका लिया था. आइए जानते हैं कि क्या है पूरा मामला और कैसे चलता है NEET एग्जाम पास कराने का नेटवर्क.

बड़े एग्जाम पर सवालिया निशान
देश के दो बड़े एग्जाम में बेइमानी से कैंडिडेट को पास कराने के दो तरीके सामने आए हैं. पहला कि पेपर आउट कराने के बाद आंसरशीट उपलब्ध करा दी जाए और दूसरा कैंडिटेट की जगह एक डमी कैंडिडेट या सॉल्वर बिठा दिया जाए. NEET के एग्जाम में दोनों तरह के मामले सामने आए हैं.

जयपुर-यूपी में धांधली के मामले आए थे

12 सितंबर 2021. देश भर में सैकड़ों एग्जाम सेंटरों पर स्टूडेंट्स ने नीट का एग्जाम देना शुरू किया. अभी एग्जाम शुरू हुए आधा घंटा ही हुआ था कि कई राज्यों से पेपर लीक होने की खबरें आने लगीं. जयपुर में एक एग्जाम सेंटर से इस रैकेट को लेकर चौंकाने वाली जानकारियां आईं. बताया गया कि एग्जाम शुरू होने के कुछ मिनट बाद ही कुछ लोगों को मोबाइल पर आंसरशीट भेजी गई. कई लोगों को प्रिंट करके आंसरशीट उपलब्ध कराई गई थी. जिन्हें ये आंसरशीट मिलीं थी उन्होंने इसके लिए मोटा पेमेंट किया था.

राजस्थान पुलिस को इस बारे में पहले ही इनपुट मिल गया था. ऐसे में वो हरकत में आई और एग्जाम सेंटर पर दबिश देकर 8 लोगों को नीट प्रश्नपत्र की आंसरशीट के साथ गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में 4 जगह छापे मारकर 6 मेडिकल स्टूडेंट सहित 9 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था. बताया गया कि ये मेडिकल स्टूडेंट डमी कैंडिडेट बनकर किसी और के लिए पेपर दे रहे थे. बदले में इन्हें लाखों रुपये मिलने थे.

इसी तरह का मामला उत्तर प्रदेश के वाराणसी में भी देखने को मिला था. यहां भी ‘मुन्नाभाई स्टाइल’ फॉलो हो रहा था. बीएचयू की एक मेडिकल छात्रा किसी और के लिए एग्जाम दे रही थी. पुलिस ने उसे पकड़ा तो पता चला कि बिहार का एक बड़ा सॉल्वर गैंग इस तरह एग्जाम पास कराने का ठेका लेता है.

पटना में NEET परीक्षा के दौरान छात्र. (फोटो- PTI)
कुछ ऐसे काम करता है प्रॉक्सी कैंडिडेट बिठाने का रैकेट
NEET एग्जाम के तकरीबन 10 दिन बाद सीबीआई ने नागपुर में एक एजुकेशनल इंस्टीट्यूट पर छापा मारकर इस पूरे सिस्टम का खुलासा किया है. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, सीबीआई ने इस मामले में 4 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. उसने जो जानकारी दी है, उसके मुताबिक नीट एग्जाम पास कराने का रैकेट कुछ ऐसे चलता था-

नागपुर की आरके एजुकेशन करियर गाइडेंस नाम का एजुकेशन सेंटर इस रैकेट का अड्डा था. सेंटर का संस्थापक परिमल कोटपाल्लिवार ऐसे लोगों को खोजता था जो किसी भी कीमत पर नीट पास करने को उतारू थे.

जिन बच्चों को फर्जी तरीके से एग्जाम पास कराना होता था, उनके पैरेंट्स से संपर्क किया जाता था.

इसके बाद उन पैरेंट्स से 50 लाख रुपए का पोस्ट डेटेड चेक लिया जाता था.

चेक के साथ ही गारंटी के तौर पर स्टूडेंट के क्लास 10 और क्लास 12 के ओरिजनल सर्टिफिकेट भी ले लिए जाते थे.

एक बार सौदा तय हो जाने के बाद परिमल स्टूडेंट एग्जाम में शामिल होने के लिए बनाए पोर्टल के यूजर आईडी और पासवर्ड ले लेता था. इसके बाद मनचाहे सेंटर के लिए जरूरी बदलाव किए जाते थे.

इसके लिए सॉल्वर के साथ मिक्स करके कैंडिडेट की फोटो बनाई जाती थी. इसके अलावा ई-आधार और दूसरे फर्जी दस्तावेज तैयार किए जाते थे.

इधर फर्जीवाड़े के साथ ही एग्जाम पास करने के लिए सॉल्वर खोजने का काम भी चलता रहता था. इस काम में परिमल की मदद दिवाकर और मुन्ना नाम के उसके दो सहयोगी भी करते थे.

सॉल्वर खोजने का काम पूरे देश से किया जाता है. परिमल इस काम के लिए अलग-अलग शहरों में जाता था. सॉल्वर को भी 5-10 लाख रुपए का पेमेंट किया जाता था.

इसके बाद प्रॉक्सी कैंडिडेट बताए गए सेंटर पर जाकर एग्जाम देता था.

कैंडिडेट के एग्जाम पास हो जाने के बाद तय की गई रकम का भुगतान होने पर उसके ओरिजनल डॉक्युमेंट उसे वापस कर दिए जाते थे.

ये सवाल अब भी बाकी हैं?
भले ही राज्यों की पुलिस और सीबीआई कुछ रैकेट्स का भंडाफोड़ करके सफलता पाने का दावा कर रही हों, लेकिन अब भी कई सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं.

क्या गारंटी है कि इसमें एग्जाम करने वाली संस्था का कोई शख्स शामिल नहीं है?

क्या एजेंसी पिछले कई बरसों में हुए सभी एग्जाम की जांच करेगी कि कहीं उनमें भी ऐसे रैकेट सक्रिय तो नहीं थे.

अगली बार फिर से ऐसा नहीं होगा इसका कोई पुख्ता इंतजाम किया गया है या नहीं?

हर साल लाखों स्टूडेंट, हजारों सेंटर पर नीट का एग्जाम देते हैं. ऐसे में ये कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि ऐसी घटना नहीं घटेगी?

किसी राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण के बिना इतने बड़े स्तर पर ये स्कैम कैसे चल रहा था. केस की बड़ी मछलियों तक हाथ पहुंचेंगे या नहीं?

जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिल जाते भारत के दो सबसे बड़े एग्जाम की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा रहेगा.

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