Netagiri news __28/8/2022—-कुछ ही देर के बाद भ्रष्टाचार से बनी कुतुब मीनार से ऊंची इमारत को ध्वस्त कर दिया जाएगा यह भारत का इतिहास बनेगा जब भ्रष्टाचार पर नकेल कसने इतना बड़ा एक्शन लिया जा रहा है ,लापरवाही और भ्रष्टाचार की इमारत बना ट्विन टावर, इन सवालों से समझें आदि और आइये इसे गिराने का श्रेय कुछ लोगों को जाता है, जिन्होंने इसे गिराने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. इसके लिए उन्हें घर से लेकर सड़क तक और प्रशासन से लेकर कानून के मंदिर तक विरोध झेलना पड़ा था.
नोएडा सेक्टर 93ए में प्रशासनिक लापरवाही व भ्रष्टाचार की गगनचुंबी इमारत ‘ट्विन टावर’ को गिराने की कवायद शुरू हो गई है. गाजे बाजे के साथ अवैध रूप से बने इन टावरों को गिराने की तैयारी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे गिराने का श्रेय कुछ लोगों को जाता है, जिन्होंने इसके खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. इसके लिए उन्हें घर से लेकर सड़क तक और प्रशासन से लेकर कानून के मंदिर तक विरोध झेलना पड़ा था. आइए इन टावरों के जमींदोज होने से ठीक पहले समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर कैसे प्रधिकरण की अनदेखी से इतना बड़ा निर्माण हो गया.
नोएडा सेक्टर 93ए में प्रशासनिक लापरवाही व भ्रष्टाचार की गगनचुंबी इमारत ‘ट्विन टावर’ को गिराने की कवायद शुरू हो गई है. गाजे बाजे के साथ अवैध रूप से बने इन टावरों को गिराने की तैयारी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे गिराने का श्रेय कुछ लोगों को जाता है, जिन्होंने इसके खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. इसके लिए उन्हें घर से लेकर सड़क तक और प्रशासन से लेकर कानून के मंदिर तक विरोध झेलना पड़ा था. आइए इन टावरों के जमींदोज होने से ठीक पहले समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर कैसे प्रधिकरण की अनदेखी से इतना बड़ा निर्माण हो गया.
इस पूरी कहानी को समझने के लिए हमें थोड़ा बैकग्राउंड देखना होगा. दरअसल जहां ये ट्विन टावर बने हैं, वह भूमि 23 नंवबर 2004 को नोएडा अथॉरिटी ने एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित किया था. इसमें नौ-नौ मंजिल के कुल 14 टावर बनाए जाने थे. लेकिन दो साल बाद यानी 29 दिसंबर 2006 को आवंटन की शर्तों में संसोधन कर दिया गया. इसमें बिल्डर को ना केवल 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति16 कर दी गई. इसके बाद 2009 में एक बार फिर से संशोधन हुआ और इस बार नोएडा अथॉरिटी ने 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया.
2012 में हुआ असली खेल
इसके बाद भी कई बार संशोधन किए गए और हर बार टावर की संख्या बढ़ती रही. असली कहानी दो मार्च, 2012 को शुरू हुई और टावर 16 व 17 के लिए संशोधन कर इन्हें 40 मंजिल तक बनाने की हरी झंडी दे दी गई. इसी के साथ इन टावरों की ऊंचाई 121 मीटर और दोनों के बीच की दूरी महज नौ मीटर निर्धारित कर दी गई. जबकि इस तरह की इमारतों के बीच न्यूनतम 16 मीटर तो होनी ही चाहिए.
दिवालिया हो चुका है बिल्डर
एमराल्ड कोर्ट परियोजना में इन दोनों टावरों का निर्माण बिल्डर सुपरटेक ने किया है. सात दिसंबर, 1995 में निगमित इस कंपनी के संस्थापक आरके अरोड़ा हैं। आरके अरोड़ा की पत्नी संगीता अरोड़ा ने 1999 में एक दूसरी कंपनी सुपरटेक बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की. इसके बाद अरोड़ा ने अपनी विभिन्न कंपनियों के जरिए देश के विभिन्न शहरों में अपने प्रोजेक्ट शुरू कर दिए. इनमें नोएडा, ग्रेटर नोएडा, मेरठ, गुरुग्राम समेत कई अन्य शहर शामिल हैं. हाल ही में NCLT ने सुपरटेक को दिवालिया घोषित कर दिया है।
आम लोगों ने लड़ी लड़ाई
इस परियोजना में फ्लैट खरीदने वाले लोगों ने परियोजना में अनियमितता को देखते हुए कानूनी लड़ाई लड़ने की ठानी. इनमें यूबीएस तेवतिया, एसके शर्मा, रवि बजाज, वशिष्ठ शर्मा, गौरव देवनाथ, आरपी टंडन, अजय गोयल आदि लोग शामिल हैं. इन सभी लोगों ने वर्ष 2009 में आरडब्ल्यू बनाया और जंग का ऐलान कर दिया. पहले इस आरडब्ल्यूए ने नोएडा अथारिटी में शिकायत दी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां से वर्ष 2014 में ही इन टावरों को गिराने के आदेश हो गए.
सुप्रीम कोर्ट में भी हारा बिल्डर
हाईकोर्ट में हुई हार को सुपरटेक बिल्डर पचा नहीं पाया और सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. यहां भी साल की लड़ाई के बाद सुपरटेक को करारी हार का सामना करना पड़ा. आखिरकार 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखते हुए तीन महीने के अंदर टावर गिराने के आदेश कर दिए. आज 200 करोड़ की लागत से बने इन टावरों को गिराया जा रहा है. इन्हें गिराने में ही 20 करोड़ की रकम खर्च की जा रही है. यह रकम बिल्डर से वसूल की जाएगी.