क्या महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि शिंदे सेना ने हिंदुत्व की स्थानीय राजनीति और बाल ठाकरे की विरासत पर कब्जा जमा लिया है? इसका कोई आसान जवाब नहीं, लेकिन ये साफ है कि क्षेत्रीय हिंदुत्व पर उद्धव सेना की पकड़ कमजोर हुई है।
उद्धव ने अपने दादा प्रबोधनकर के गैर-ब्राह्मण आंदोलन की विरासत को आगे बढ़ाकर अच्छा काम किया। उन्होंने अपने हिंदुत्व को बीजेपी के ब्राह्मणवादी हिंदुत्व से अलग दिखाने की कोशिश की। लेकिन, ऐसा लगता है कि वो अपने हिंदुत्व को लोगों तक पहुंचाने में नाकाम रहे। पार्टी कार्यकर्ताओं से दूरी और उनका काम करने का तरीका उनके लिए नुकसानदेह रहा।
वहीं, शिंदे ने दिखाया है कि वो क्षेत्रीय हिंदुत्व के मजबूत दावेदार हैं। हालांकि वो भी बीजेपी के हिंदुत्व पर निर्भर हैं, लेकिन उन्हें सबसे सुलभ नेता माना जाता है। मनसे के राज ठाकरे की अपील कम है, लेकिन उनकी राजनीति भी बालासाहेब की हिंदुत्व विरासत को आगे बढ़ाने पर निर्भर है। पीछे न हटते हुए, बीजेपी भी बालासाहेब की विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करती है। चूंकि शिंदे, उद्धव और राज की राजनीति बालासाहेब की विरासत के इर्द-गिर्द घूमती है, इसलिए क्षेत्रीय हिंदुत्व के लिए संघर्ष जारी रहने की उम्मीद है।
महायुति की शानदार जीत ने कई जानकारों को हैरान कर दिया है। बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और उसके सहयोगी, शिंदे सेना और अजीत पवार की एनसीपी ने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। यह लोकसभा चुनाव के नतीजों के बिल्कुल उलट है। खासतौर पर, ध्यान देने वाली बात ये है कि शिंदे सेना ने उद्धव सेना से बहुत बेहतर प्रदर्शन किया। यह अब स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों के दौरान जिस बात ने एमवीए को बड़ी जीत दिलाई थी, वह विधानसभा चुनावों में काम नहीं आई।