कब और क्यों मनाई जाती है उत्पन्ना एकादशी
हर साल मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है। इस शुभ तिथि पर भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही जीवन के दुखों को दूर करने के लिए व्रत भी किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि दान करने से जातक को कभी भी अन्न और धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। क्या आप जानते हैं मार्गशीर्ष माह में उत्पन्ना एकादशी क्यों मनाई जाती है? अगर नहीं पता, तो आइए जानते हैं इसकी वजह के बारे में।
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के शरीर से एक कांतिमय रूप वाली देवी अवतरित हुईं थी, जिसके बाद उन्होंने मुर राक्षस का वध किया। एकादशी तिथि पर उत्पन्न होने के कारण देवी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए एकादशी व्रत की शुरआत करने के लिए उत्पन्ना एकादशी को बेहद शुभ माना जाता है।
पंचांग के अनुसार,मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 26 नवंबर को देर रात 01 बजकर 01 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 27 नवंबर को देर रात 03 बजकर 47 मिनट पर होगा। ऐसे में 26 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी व्रत किया जाएगा। एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि में किया जाता है। उत्पन्ना एकादशी का पारण 27 नवंबर को दोपहर 01 बजकर 12 मिनट से लेकर 03 बजकर 18 मिनट के बीच कर सकते हैं।
- एकादशी व्रत विधिपूर्वक करें।
- श्रद्धा अनुसार गरीब लोगों में अन्न, धन और वस्त्र का दान करें।
- पूजा के अंत में भगवान विष्णु को फल और मिठाई समेत प्रिय भोग अर्पित करें।
- भोग में तुलसी के पत्ते जरूर शामिल करें।
- भजन-कीर्तन करना चाहिए।
- ॐ अं वासुदेवाय नम:
- ॐ आं संकर्षणाय नम:
- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
- ॐ नारायणाय नम:
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय