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देश

‘दहेज प्रताड़ना में पति के दूर के रिश्तेदारों को बेवजह न लपेटे’, जानिए सुप्रीम कोर्ट ने किस केस में की ये टिप्पणी

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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को इस बात को लेकर सचेत किया है कि दहेज प्रताड़ना के आरोपों के मामले को गहन तरीके से परीक्षण किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि पति के दूर के रिश्तेदारों को उसमें बिना कारण न लपेटा जाए। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सीटी रविकुमार ने पति के कजन और उनकी पत्नी (कजन ब्रदर और उनकी पत्नी) के खिलाफ चल रहे क्रिमिनल केस को खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी है। इस मामले में महिला के पिता ने दहेज प्रताड़ना की शिकायत की थी और महिला के ससुरालियों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना की धारा-498ए के तहत केस दर्ज किया गया था।

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‘सामान्य समझ के साथ रिलेटिव शब्द को परिभाषित करें’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रिलेटिव यानी रिश्तेदार शब्द को कानून में अलग से परिभाषित नहीं किया गया है और इसे सामान्य समझ के अनुसार परिभाषित किया जाना चाहिए। आमतौर पर इसे पिता, माता, पति या पत्नी, पुत्र, पुत्री, भाई, बहन, भतीजा, भतीजी, पोता या पोती या किसी व्यक्ति के जीवनसाथी को शामिल करते हुए समझा जा सकता है। जब आरोप किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ हो जो ब्लड, विवाह या गोद लेने के माध्यम से संबंधित नहीं है, तो अदालतों का कर्तव्य है कि वह परीक्षण करें कि आरोप बढ़ा-चढ़ाकर लगाए गए हैं या नहीं? अदालत ने गीता मेहरोत्रा बनाम राज्य यूपी मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें यह कहा गया था कि पारिवारिक विवाद में नामों का केवल साधारण संदर्भ बिना सक्रिय भूमिका के आरोप के रूप में अदालत की ओर से संज्ञान लेने को उचित नहीं ठहराता।

दिसंबर 2020 में दर्ज हुई थी FIR

मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता आरोपी (पति का चचेरा भाई और उसकी पत्नी) हैं जो मोहाली में रहते थे, जबकि शिकायतकर्ता (महिला का पिता) की बेटी जालंधर में रहती थी। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में, जहां कथित पीड़ित और आरोपी एक ही घर में नहीं रहते, अदालत को यह देखना चाहिए कि क्या यहां उक्त शख्स को आरोपी के तौर पर शामिल किया जाना मात्र मुख्य आरोपी पर दबाव डालने के उद्देश्य से किया गया है? अदालत ने पाया कि आरोप जनरल किस्म का है और ऐसा कोई प्रारंभिक सबूत नहीं है कि यह साबित हो कि आरोपी याची ने अपराध किया है। इन आरोपों के आधार पर केस चलाया जाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

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