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3 करोड़ की फाइल कहां हुई गायब,तत्कालीन कलेक्टर के दिए गए आदेश पर बनाई गई थी , जांच टीम आज तक नहीं हुई जांच और ना ही हुई कार्रवाई…. आखिर क्या है माया का माया जाल जिसमें जांच टीम भी उलझ कर रह गई,?

3 करोड़ की फाइल कहां हुई गायब,तत्कालीन कलेक्टर के दिए गए आदेश पर बनाई गई थी , जांच टीम आज तक नहीं हुई जांच और ना ही हुई कार्रवाई.... आखिर क्या है माया का माया जाल जिसमें जांच टीम भी उलझ कर रह गई,?

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Netagiri.in—कोरबा 22 अक्टूबर। इनफोर्समेन्ट डिपार्टमेंट के गिरफ्त में आई आदिवासी विकास विभाग कोरबा की पूर्व सहायक आयुक्त माया वारियर के कार्यकाल में भुगतान की गई 3 करोड़ रुपयों से सम्बन्धित फाइल गायब होने की जांच का आदेश तत्कालीन कलेक्टर ने मई 2023 में जारी किया था। डेढ़ वर्ष बाद भी मामला ठंडे बस्ते में है। सवाल ये है कि माया वारियर को अब तक कौन बचत आ रहा है? यह मामला अब तक क्यों दबा हुआ है?

 

दरअसल, वर्ष 2022 में केंद्र सरकार की ओर से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में विकास कार्यों को लेकर कोरबा जिला प्रशासन को 6 करोड़ 27 लाख 56 हजार रुपए प्रदान किए गए थे। इस पैसे से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में छात्रावास का निर्माण, बिजली, पंखा, नलकूप खनन आदि से संबंधित कार्य किया जाना था।

 

 

€इस कार्य के लिए कोरबा जिला प्रशासन ने 6 जून 2022 को एक आदेश जारी किया था और इसके तहत आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त को कार्य एजेंसी नियुक्त किया था। उस समय सहायक आयुक्त के पद पर माया वारियर की पदस्थापना थी। बताया जाता है कि उक्त राशि में से 4 करोड़ 95 लाख 79 हजार रुपए आश्रम और छात्रावासों की मरम्मत एवं इनमें सामाग्री की आपूर्ति पर खर्च किया जाना था। इसमें से 4 करोड़ 4 लाख रुपए सिविल कार्य के लिए प्रदान किए गए थे। इस राशि में से लगभग 3 करोड़ रुपए का व्यय तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर के कार्यकाल में हुआ। चूंकि संविधान के अनुच्छेद 275 ए के तहत प्रदत्त इस राशि से खर्च किए जाने से संबंधित सारे दस्तावेज- मेजरमेंट बुक, देयक की मूल नस्ती कार्यालय में होनी थी, मगर ये सभी दस्तावेज कार्यालय में नहीं मिले। मामला सामने आने पर 22 मई 2023 को कोरबा के तत्कालीन कलेक्टर ने इस मामले की जांच के लिए अधिकारियों की एक टीम का गठन किया। टीम में तत्कालीन अपर कलेक्टर प्रदीप साहू, सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग कोरबा, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के तत्कालीन एसडीओ नरेंद्र सरकार, जिला कोषालय अधिकारी, सब इंजीनियर ऋषिकेश बानिक और नगर निगम के सहायक लेखा अधिकारी अशोक देशमुख को शामिल किया गया था। टीम को 15 दिन में जांच पूरी करने के लिए कहा गया था। मगर डेढ़ साल गुजर गए लेकिन अभी तक टीम मामले की जांच पूरी नहीं कर सकी। इस सम्बंध में वर्तमान अपर कलेक्टर दिनेश कुमार नाग से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मामले की जानकारी उन्हें नहीं है। वे जानकारी प्राप्त करेंगे।

इस बीच बाहर आए दस्तावेजों से एक नए मामले का खुलासा हुआ है। पता चला है कि केंद्र सरकार से मिले राशि को खर्च करने के लिए आदिवासी विकास विभाग ने नगर निगम कोरबा के अधीक्षण अभियंता एम के वर्मा से तकनीकी स्वीकृति प्राप्त की थी। इसके तहत 17 छात्रावासों का मरम्मत किया जाना था। इसमें नवीन प्री मेट्रिक कन्या
छात्रावास मदनपुर और कोरकोमा के अलावा प्री मेट्रिक अनुसूचित जनजाति कन्या छात्रावास कुदमुरा, कोरबा, धनगांव, गोढ़ी, कुदुरमाल, पोड़ी उपरोड़ा, कन्या छात्रावास सेन्हा, कोरबी चोटिया, सिंधिया, पसान, हरदीबाजार, अनुसूचित जनजाति कन्या आश्रम हरदीबाजार के अलावा करतला, रंजना और अरदा के कन्या आश्रम शामिल थे।

 

इस कार्य के लिए आदिवासी विकास विभाग के तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर ने प्रत्येक आश्रम के लिए लगभग एक करोड़ 52 लाख रुपए की स्वीकृति प्राप्त की थी। अब इन दस्तावेजों के सामने आने और माया वारियर की गिरफ्तारी के बाद तीन करोड़ी फाइल का मामला फिर सुर्खियों में है। आपको बता दें कि कलेक्टर के जांच आदेश का खुलासा सबसे पहले “न्यूज़ एक्शन” ने किया था। बाद में जांच में लेटलतीफी की खबर भी “न्यूज़ एक्शन” ने प्रकाशित की थी, लेकिन प्रशासन अपनी चाल से चलता रहा और जांच की फाइल धूल खाती रही।

ठेकेदारों के सिपहसालार पर कृपा?

जानकारी के अनुसार आदिवासी विकास विभाग में ठेकेदारों के एक सिपहसलार है। अफसरों और नेताओं के संरक्षण के कारण कई वर्षों से इस विभाग में कुछ चुनिंदा ठेकेदार कब्जा जमाए बैठे हैं। किसी नए ठेकेदार को यहां टेन्डर फार्म तक नहीं मिलता। बताते हैं कि जन सम्पर्क विभाग से सांठगांठ कर चंद प्रतियों में टेंडर छपाकर फाइल में लगा दिया जाता था। अन्य ठेकेदारों को टेण्डर की जानकारी भी नहीं होती थी और किसी तरह पता भी चल जाता था, तो उन्हें टेण्डर फार्म ही नहीं दिया जाता था। तीन करोड़ी फाइल गायब होने के मामले में भी यही खेल चल रहा है। अन्य दस्तावेज भले नहीं मिल रहे मगर ठेकेदारों / सप्लायरों को किये गए भुगतान की जानकारी तो उपलब्ध है। ठेकेदारों / सप्लायरों से भुगतान से सम्बंधित विवरण क्यों नहीं लिया गया? विवरण प्राप्त कर उनका भौतिक सत्यापन क्यों नहीं किया गया? किसके दबाव और प्रभाव में मामला अब तक दबा हुआ है?

ईडी की गिरफ्त में माया वारियर

उल्लेखनीय है कि हाल ही में ईडी ने डीएमएफ घोटाले में माया वारियर को गिरफ्तार किया है। माया वारियर जेल में बंद है। उनसे ईडी ने कोरबा में हुए डीएमएफ घोटाले को लेकर लंबी पूछताछ की है। इस मामले में कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू से भी पूछताछ की गई है। माया वारियर निलंबित आई ए एस रानू साहू की सबसे ज्यादा करीबी और राजदार मानी जाती रही है।

माया ने किया दोहरा घोटाला

सूत्रों के अनुसार एक ही कार्य के लिए माया वारियर ने अलग अलग मद से दोहरी राशि लेकर बड़ा घोटाला किया है। एक ओर केंद्र सरकार से प्राप्त पैसे को खर्च करने के लिए माया वारियर ने 17 कार्यों की स्वीकृति प्राप्त करवाया। दूसरी ओर इन्हीं कार्यों के लिए डीएमएफ से भी करोड़ों रुपए की राशि निकाली गई। मसलन प्री मेट्रिक अनुसूचित जनजाति कन्या छात्रावास कुदुरमाल के लिए 34 लाख, कन्या छात्रावास कोरबी चोटिया के लिए 34 लाख और इतनी ही राशि कन्या छात्रावास पसान, पोड़ी उपरोड़ा और सिंघिया छात्रावास की मरम्मत के लिए भी निकाली गई। जबकि इन्हीं छात्रावासों की मरम्मत के नाम पर तत्कालीन सहायक आयुक्त ने कुदुरमाल के लिए एक करोड़ 52 लाख 97 हजार, पोड़ी, कोरबी चोटिया, सिंधिया और पसान के लिए भी 1.52 करोड़, 1.52 करोड़ रुपए अपने विभाग में लिया।

बताया जा रहा है कि इस अवधि में नगर निगम के एक चर्चित सब इंजीनियर को यहां अटैच कर रखा गया था। उक्त सब इंजीनियर कोरबा के तत्कालीन विधायक और प्रदेश के तत्कालीन राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल का चहेता बताया जाता था। नगर निगम का अधिक्षण अभियंता एम के वर्मा भी तत्कालीन राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल का चहेता रहे हैं।

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