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छत्तीसगढ़

हिट एंड रन में आखिर क्यों वापस लेना पड़ा सरकार को कदम*



किसान कानून की तरह इस बार भी झुकी केंद्र सरकार

सच में अगर सरकार देश की सड़को पर होने वाली दुर्घटनाओ को ईमानदारी पूर्वक रोकना चाहती थी,तो कानून संसद में पास करने से पहले सरकार के एक प्रतिनिधि मंडल को सड़क पर चलने वालों से सीधी बात करनी थी। क्युकी इस कानून की जद में ट्रक ड्राइवरों के अलावा बस चालक,एंबुलेंस चालक,कार और ऑटो चालकों के अलावा बाइक और दूसरे छोटे कमर्शियल वाहन चालक आने वाले थे।।मतलब मुद्दा सीधे आम नागरिको से जुड़ा हुआ था।। क्यूंकि 125 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में करीब 30 करोड़ लोगों के पास वैध लाइसेंस है।

इस कानून को लेकर हमने देखा है कि दो अलग अलग राय रखने वाले लोग हमारे सामने खड़े थे। पहला वो जो केंद्र सरकार के हर फैसले को अपना सौभाग्य मान कर उससे अंधा समर्थन देता है। तो दूसरा हर फैसले की समीक्षा और उसका दूरगामी परिणाम देखता है।। देखना भी चाहिए,भारत में लगभग 63.73 लाख किलोमीटर लंबा सड़क नेटवर्क है,जो दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क जरूर है।। परंतु देश की सड़कों का दो तिहाई हिस्सा कागजों में ही सड़क के नाम पर जरूर दर्ज है। जबकि वह पैदल चलने योग्य भी नही है। पहले वर्ग का कहना है कि हिट एंड रन जैसा कानून विदेशों खासकर विकसित देशों में पहले से लागू है,इसलिए वहां सड़क हादसों को संख्या बहुत कम है।। आप देश को उन विकसित देशों की तरह बनाना और देखना चाहते है तो इस कानून का समर्थन कीजिए।। इस कानून को समझिए इसमें ये विकल्प है वो तरीका है फलां है,, डेकना है।।दूसरा वर्ग जो समीक्षक माना जाता है,उसका कहना है,आप जिसके लिए कानून बना रहे है जिस वजह से लागू कर रहे हैं उसने कभी बात की है,उनसे समझना चाहा है,कि प्रस्तावित कानून को लेकर उनकी क्या राय है?? वो सरकार के इस फैसले में किस तरह से सहयोग कर सकते हैं?? क्या हमारा वर्तमान इंफ्रा स्ट्रक्चर(सड़क व्यवस्था)और परिवहन विभाग इस स्थिति में है जो कानून लागू होने पर उसका ईमानदारी से पालन करवा पाएगा?? क्या हमारे राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण और उसकी गुणवत्ता संभावित हादसों को रोकने में सक्षम है?? शायद नहीं?? तो पहले इसे सुधारा जाना था। जो कि अभी प्रक्रिया में है। हमारे यहां कि सड़कों के निर्माण में सबसे बड़ी समस्या भारी भ्रष्टाचार तो है ही,इसके अलावा सड़कों की आवश्यक चौड़ाई,उसकी तकनीकी खामियां,उस पर स्वचलित गति मापक यंत्रों का न होना,30 प्रतिशत से अधिक पुल पुलियाओं का अंग्रेजी काल का होना जैसी तमाम कमियां पहले से ही मौजूद है। इस पर परिवहन विभाग और पुलिस को वाहनों से वसूली के बजाए सुरक्षित परिवहन के लिए जिम्मेदार बनाने के साथ बहुत कुछ किया जाना जरूरी है।। जो कि हुआ ही नहीं है और आप एकदम से कड़ा कानून बनाकर सीधे उसे आम नागरिकों पर थोपने का जब जब प्रयास करेंगे परिणाम ऐसा ही होगा जैसा इन दो काले कानूनों को लागू करने के बाद हुआ है।। ऐसे में सीधे तौर पर कानून बनाकर थोपने के बजाए जिनके लिए जिस विषय में कानून बनाया गया उससे जुड़े लोगों की राय लिया जाना जरूरी था। मतलब कानून की धाराएं बदलने के बजाए उनमें थोड़े थोड़े सुधार के निरंतर प्रयास किए जाने चाहिए थे।।
क्यूंकि भारत के संविधान में पहले से ही 450 तरह की धाराएं है क्या इन धाराओं के तहत कानून का पालन पूरी ईमानदारी या निष्ठा से किया जाता है? शायद नहीं या बिलकुल भी नहीं।। फिर इस बात की क्या गारंटी है कि प्रस्तावित धारा 106(4)
(हिट एंड रन कानून के तहत IPC की धारा 106 (2) में दस साल की सजा का प्रावधान है,साथ ही जुर्माना भी देना होगा)इसका सही से पालन होगा।। पहले ऐसे मामले धारा 304 (A) वाहन दुर्घटना में आते थे। इसमें पहले यदि कोई लापरवाही पूर्वक वाहन चलाता है और गैर इरादतन मामले में यदि किसी की मृत्यु होती है, तो उसमें 2 साल की सजा और संज्ञेय अपराध थी.ये जमानती धारा थी। अब तक ऐसे मामलों में थाने से मुचलके के पर लोग छूट जाते थे. बाद में कोर्ट में चालान पेश होता था। जिसमें रेगुलर बेल दिया जाता था। इसे देखते हुए आज के परिस्थितियों में उक्त धारा में थोड़ी सख्ती और आंशिक परिवर्तन किया जाना उचित दिखता था। परंतु समपूर्ण परिवर्तन किए जाने से ही देश का माहौल खराब हुआ।।

*अब संशोधन के बाद वर्तमान में पुलिस सीधे ड्राइवर को गिरफ्तार कर लेगी और उसे जेएमएफसी कोर्ट,सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट से बेल लेना होगा। इसमें दो-तीन या 6 महीने भी लग सकते हैं. उसके बाद भी बेल होगी या नहीं होगी ये कहा नहीं जा सकता है।। यदि दुर्घटना के बाद ड्राइवर सीधे थाने जाकर समर्पण करता भी है तो भी उसे आधी सजा मिलना तय है। यही बात चालकों को समझ में नहीं आ रही है।हालाकि देश व्यापी विरोध के बाद सरकार का कहना है कि ये कानून अभी लागू नहीं हुआ है.त्रिपक्षीय वार्ता और समीक्षा के बाद ही कुछ तय किया जाएगा।।
मतलब केंद्र सरकार ने बिना विचार किए आनन फानन में किसी तरह कानून बना कर थोपने का प्रयास तो किया,जिसे देश के आम नागरिकों ने पूरी तरह से नकार दिया।। अभी सिर्फ देश भर के ट्रक चालक संघ ने विरोध का रास्ता चुना है। जिस दिन आम लाइसेंस धारी नागरिकों को इस कानून से होने वाली समस्या समझ में आ जाएगी,उस दिन 30 करोड़ लाइसेंस धारी नागरिक सड़क पर खड़े होंगे। जिसका सीधा अर्थ यह समझा जा सकता है कि आज इंटरनेट के युग में केंद्र या राज्य की सत्ता में भले ही किसी पार्टी की 10 साल या उससे पुरानी सरकार हो पंरतु आम जनता से जुड़े मुद्दों में एकपक्षीय निर्णय लेने का अधिकार नहीं है न होगा। देश के नागरिकों के पास ऐसे निर्णयों का पुरजोर विरोध का अधिकार था,है और आगे भी रहेगा।।।।

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